Rasta Mila Na Manzil, Rahbar ki Rahbari Me by Khalid Nadeem Badayuni

Rasta Mila Na Manzil, Rahbar ki Rahbari Me

रस्ता मिला न मंज़िल रहबर की रहबरी में । हम यूँ भटक रहे हैं सहरा-ए-जिंदगी में ।। तुम तैर कर तो देखो सूखी हुई नदी में । फर्क़ आएगा समझ में खुश्की में और तरी में ।। शौक़-ए-तलब की शायद मेराज हो गई है । दीवाना खो गया है महबूब की गली में ।। फूलों की खुशबूओं से महरूम है जो अब तक । वह शाख़ आ गई है एहसास-ए-कमतरी में ।। खुशियाँ मना रहे हैं कंदील के उजाले । हम आ गए हैं जब से आगोश-ए-तीरगी में ।। साग़र में और सुबू में पाई कहाँ वो लज्ज़त । जो लुत्फ़ हमने पाया आँखों से मैकशी में ।। जिस वक्त मेरी आँखें देखेंगी उस के जलवे । हो जाएगा इज़ाफ़ा आँखों की रौशनी में ।। कहते हैं ये नजूमी पढ़ कर किताब-ए-हस्ती । नाकामियां लिखी हैं 'ख़ालिद' की जिंदगी में ।।
Khalid Nadeem Badayuni

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