नमस्कार दोस्तों, आज हम आपको इस Article में "श्री कृष्ण जन्माष्टमी" के बारे में बताने जा रहे हैं। आज हम इस Article मे जानेंगे "Krishna जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है, कैसे मनाई जाती है , कब मनाई जाती है और इस त्यौहार का महत्व क्या है" तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।
Sri Krishna Janmashtami क्या है ?
श्री कृष्ण जन्माष्टमी भगवान Sri Krishna का जन्म उत्सव है। भगवान श्री कृष्ण, विष्णु जी के आठवें अवतार थे। जन्माष्टमी का पर्व पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापों से मुक्त करने हेतु Sri Krishna के रूप में अवतार लिया ,भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्र रूप में Sri Krishna का जन्म हुआ था।
Krishna Janmashtami Kyu Aur Kab Manaya Jata Hai ? क्यों और कब मनाया जाता जन्माष्टमी का पवित्र त्योहार ?
हर साल भाद्रपद की माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह त्यौहार मनाया जाता है। इस त्योहार को लेकर लोगों में काफी उत्साह होता है। इन दिनों चारों तरफ भगवान श्री कृष्ण के रंगों में डूबा रहता है। वैसे तो सभी लोग इस त्योहार की महत्ता जानते हैं। लेकिन आज की युवा पीढ़ी शायद ही जन्माष्टमी मनाने का कारण जानती होगी। चलिए हम आपको जन्माष्टमी के इस लेख मे Krishna Janmashtami के पुरी जानकारी बताते हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने इस धरती को पापियों के जुल्मों से मुक्त कराने के लिए भगवान कृष्ण के रूप में जन्म लिया था। कृष्ण माता देवकी की कोख से इस धरती पर अत्याचारी मामा कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में अवतार लिया। लेकिन उनका पालन पोषण माता यशोदा ने किया। पापों से मुक्ति दिलाने के लिए श्रीकृष्ण ने संसार में जन्म लिया था। तभी से उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में यह त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
यह त्यौहार हर जगह अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कई जगहो पर इस दिन फूलों की होली खेली जाती है। और कई रंगों से होली खेलते हैं। इसके अलावा झांकियों के रूप में श्री कृष्ण के मोहक अवतार देखने को मिलते हैं। मथुरा में इस त्यौहार को विशेष रौनक देखने को मिलती है। बहुत से लोग इस दिन भी व्रत रखते हैं।अष्टमी के दिन मंदिर में भगवान श्री कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और मंदिरों में रासलीला भी देखने को मिलती है।
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KRISHNA जन्माष्टमी की तैयारियां:-
श्री Krishna जन्माष्टमी के दिन मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। इस दिन मंदिरों में मनमोहक झांकियां सजाई जाती है। जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत का विधान है। जन्माष्टमी पर सभी रात 12 बजे तक व्रत रखते हैं।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत का पालन करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। भगवान श्री कृष्ण पूजा आराधना का यह पावन पर्व सभी को कृष्ण भक्ति से परिपूर्ण कर देता है। इस दिन व्रत रखा जाता है। श्री कृष्ण को झूले पर बैठाकर झूला झुलाया जाता है। कहीं-कहीं रासलीला और दही हांडी मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन भी होता है।
SRI KRISHNA JANMASHTAMI दही हांडी प्रतियोगिता:-
श्री कृष्ण जी को माखन और दही बचपन से ही बहुत पसंद था।इसी कारण से वे अपने दोस्तों के साथ घर-घर जाकर माखन चुराया करते थे। श्री कृष्ण मटकी फोड़ कर माखन चुराकर खा लेते थे उनकी यही शरारत से दही हांडी उत्सव मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
जन्माष्टमी के दिन देश के विभिन्न क्षेत्रों मैं मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें सभी वर्ग के लोग भाग लेते हैं। हांडी को छाछ और दही से भर दिया जाता है और इसे एक रस्सी के सहारे आसमान में लटका दिया जाता है।
मटकी को फोड़ने के लिए बालकों द्वारा प्रयास किया जाता है। दही हांडी प्रतियोगिता मैं जो टीम विजयी होती है, उसे उचित इनाम दिया जाता है।
श्रीकृष्ण की जन्मभूमि वृन्दावन में तो इस पर्व की एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है. कृष्णा के कई नाम है. कृष्ण प्रेमी उन्हें कन्हैया, गोविंद, गोपाल, नंदलाल, ब्रिजेश, मनमोहन, बालगोपाल, मुरली मनोहर, श्याम, Krishna आदि नामों से भगवान श्रीकृष्ण को उनके भक्त बुलाते हैं. बाल कृष्ण की शररातों से जुड़ी ढेरों कहानी हैं, जिन्हें आज भी सुनाया जाता है. श्रीकृष्ण को सफेद मक्खन बेहद ही पंसद था जिस कारण उन्हें 'माखन चोर' नाम से भी जाना जाता है.
LORD SRI KRISHNA के जन्म की पौराणिक कथा :-
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी यानी कि श्रीकृष्ण जन्म की खुशियां मनाई जाती हैं। भक्त मध्यरात्रि में कन्हैया का श्रृंगार करते हैं, उन्हें भोग लगाते हैं और पूजा-आराधना करते हैं। इसी के साथ मुरलीधर के जन्म की कथा सुनते हैं। मान्यता है कि श्रीकृष्ण जन्म की यह अद्भुत कथा सुनने मात्र से ही समस्त पापों का नाश हो जाता है। साथ ही जातक पर कन्हैया की कृपा बरसती है।
द्वापर युग में यदुवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।
एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।
तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- 'मेरी जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है? 'कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।
कारागार में ही देवकी ने सात संतानों को जन्म दिया और कंस ने सभी को एक-एक करके मार दिया। इसके बाद आठवीं संतान के समय कंस ने कारागार का पहरा और भी कड़ा कर दिया। तब भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में कन्हैया का जन्म हुआ। तभी श्री विष्णु ने वसुदेव को दर्शन देकर कहा कि वह स्वयं ही उनके पुत्र के रूप में जन्में हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि वसुदेव जी उन्हें वृंदावन में अपने मित्र नंदबाबा के घर पर छोड़ आएं और यशोदा जी के घर में जिस कन्या का जन्म हुआ है, उसे कारागार में ले आएं। यशोदा जी से जन्मी कन्या कोई और नहीं बल्कि स्वयं माया थी। यह सबकुछ सुनने के बाद वसुदेव जी ने वैसा ही किया।
वसुदेव जी ने जैसे ही कन्हैया को अपनी गोद में उठाया। कारागार के ताले खुद ही खुल गए। पहरेदार अपने आप ही नींद के आगोश में आ गए। फिर वसुदेव जी कन्हैया को टोकरी में रखकर वृंदावन की ओर चले। कहते हैं कि उस समय यमुना जी पूरे ऊफान पर थीं तब वसुदेव जी महाराज ने टोकरी को सिर पर रखा और यमुना जी को पार करके नंद बाबा के घर पहुंचे। वहां कन्हैया को यशोदा जी के साथ पास रखकर कन्या को लेकर मथुरा वापस लौट आए।
पुराण के मुताबिक जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के बारे में पता चला तो वह कारागार पहुंचा। वहां उसने देखा कि आठवीं संतान तो कन्या है फिर भी वह उसे जमीन पर पटकने ही लगा कि वह मायारूपी कन्या आसमान में पहुंचकर बोली कि रे मूर्ख मुझे मारने से कुछ नहीं होगा। तेरा काल तो पहले से ही वृंदावन पहुंच चुका है और वह जल्दी ही तेरा अंत करेगा।
इसके बाद कंस ने वृंदावन में जन्में नवजातों का पता लगाया। जब यशोदा के लाला का पता चला तो उसे मारने के लिए कई प्रयास किए। कई राक्षसों को भी भेजा लेकिन कोई भी उस बालक का बाल भी बांका नहीं कर पाया तो कंस को यह अहसास हो गया कि नंदबाबा का बालक ही वसुदेव-देवकी की आठवीं संतान है। कृष्ण ने युवावस्था में कंस का अंत किया। इस तरह जो भी यह कथा पढ़ता या सुनता है उसके समस्त पापों का नाश होता है।
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Written by Sakshi Jaiswal
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