DURGA PUJA KYU MANAYA JATA HAI AUR NAVRATRI के 9 रूप DURGA जी के कौन-कौन से है?

दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है.


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दुर्गा पूजा हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह भारत के सभी भागों में मनाया जाता है। यह त्योहार अश्विन के सोलहवें  दिन से शुरू होता है, और 10 दिनों तक चलता है। इस अवधि में लोग दुर्गा मां की पूजा करते हैं। Durga Puja Shayari in Hindi | Latest Navratri Quotes

DURGA PUJA TIME TABLE 2024 

HAPPY DURGA PUJA 2020 | NAVRATRI 2020
शारदीय नवरात्रि का शुभ मुहूर्त 2020 इस बार का शारदीय नवरात्रि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी क‍ि 17 अक्टूबर को पड़ रही है। इसी द‍िन कलश स्‍थापना होगी। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 27 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 13 मिनट तक है। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 29 मिनट तक है।
दुर्गा महा अष्टमी पूजा 2020 अक्टूबर 23, 2020 को 06:58:53 से अष्टमी आरम्भ अक्टूबर 24, 2020 को 07:01:02 पर अष्टमी समाप्त

Happy Durga Puja 2020



देवी दुर्गा की पूजा क्यों की जाती है ? | Why Is Durga Puja Celebrated?


दुर्गा पूजा के संबंध में कई कहानियां हैं। कहा जाता है कि जब राम को रावण से युद्ध करना पड़ा तो उन्होंने दुर्गा की पूजा की। उन्होंने अश्विन के पच्चीसवें  दिन रावण का वध किया। इसलिए दुर्गा पूजा उनकी विजय की याद में मनाया जाता है। इसके संबंध में दूसरी कहानी यह है कि दुर्गा ने अश्विन के पच्चीसवें दिन महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।उनके दस हाथ है, जिसमें सभी हाथों में विभिन्न हथियार हैं। देवी दुर्गा के कारण लोगों को उस असुर से राहत मिली, जिसके कारण लोग उनकी पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं।

नवरात्र यह उत्सव है शक्ति की आराधना का शक्ति की उपासना का 9 दिनों तक चलने वाली इस त्यौहार में मां शक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। 


 DURGA MAA की 9 रूपों की पूजा | NAVRATRI 


दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं।

#1 शैलपुत्री :-

दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।

दुर्गाजी दूसरा स्वरूप में 'ब्रह्मचारिणी' के नाम से जानी जाती हैं।

#2 ब्रह्मचारिणी:-

नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।

दुर्गाजी तीसरा स्वरूप में 'चंद्रघंटा' के नाम से जानी जाती हैं।

#3 चंद्रघंटा:-

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. यह शुक्र गृह की देवी मानी जाती हैं।देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहा गया है। इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। इस देवी के दस हाथ हैं। वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं।

दुर्गाजी चौथा स्वरूप में 'कुष्मांडा' के नाम से जानी जाती हैं।

#4 कुष्मांडा:-

नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

दुर्गाजी पाँचवाँ स्वरूप में 'स्कंदमाता' के नाम से जानी जाती हैं।

#5 स्कंदमाता:-

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।

दुर्गाजी छठा स्वरूप में 'कात्यायनी' के नाम से जानी जाती हैं।

#6 कात्यायनी:-

माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है।

दुर्गाजी सातवीं स्वरूप में 'कालरात्रि' के नाम से जानी जाती हैं।

#7 कालरात्रि:-

माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।कहा जाता है कि कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं।

दुर्गाजी आठवीं स्वरूप में 'महागौरी' के नाम से जानी जाती हैं।

#8 महागौरी:-

माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। इनकि चार भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है।

दुर्गाजी नौवीं स्वरूप में 'सिद्धिदात्री' के नाम से जानी जाती हैं।

#9 सिद्धिदात्री:-

माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं।नवरात्र के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।नवरात्र में यह अंतिम देवी हैं। हिमाचल के नंदापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है।

दुर्गा पूजा मे गरबा और डांडिया प्रतियोगिता:-


नवरात्र में डांडिया और गरबा खेलना बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण माना गया है। कई जगह सिन्दूरखेलन का भी रिवाज है। इस पूजा के दौरान विवाहित औरते माँ के पंडाल में सिंदूर के साथ खेलती है। गरबा की तैयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है प्रतियोगिताएं रखी जाती है ।और विजेता को पुरस्कृत किया जाता है।


हिन्दू धर्म के हर त्यौहार के पीछे सामाजिक कारण होता है। दुर्गा पूजा भी मनाने के पीछे भी  सामाजिक कारण है। दुर्गापूजा अनीति, अत्याचार तथा बुरी शक्तियों के नाश के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। दुर्गापूजा अनीति, अत्याचार तथा तामसिक प्रवृत्तियों के नाश के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है।

Written By:- Sakshi Jaiswal 
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